सजनों ?
( तर्ज : विठ्ठला सम चरण )
सजनोऽऽ !
अब स्मरण तुम्हारा आता ।
बिगड गयी यह रीत नीत की
विवे महाप्रलय ही भाँता ! ॥ टेक ॥
वे दिन कैसे थे भारत के ।
सब ही रहते थे इकमत के ॥
अब तो कहिं न दिखाता ॥
सजनों ! ॥१ .॥
श्रम करना सबको ही पसन्द था ।
अतिथी आदर में आनंद था ।
प्रभु - भक्तीका प्रायः छन्द था ।
अब भगवान् न कहता ॥
सजनों ! || २ ||
यह है भूल हमारी भारी ।
बचपन शिक्षा दिया अधूरी ॥
प्यार किया सबही बेकारी ।
धर्म - कर्म नहीं ममता ॥
सजनों ॥३ ॥
बही दुनिया संयम - नियम से ।
तुकड्यादास कहे क्या इनसे ? ।
हँसी मजाक उडाते हमसे ।
दिल अब कहने घबडाता ॥
सजनों ! || ४ ||
चिलबिला , रेल्वे स्टेशन ,
प्रतापगड ; दि . १६-८-६२
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